Jungle Ka Dard
Ved Prakash, Dr. Dubey
Kinder- und Jugendbücher / Sachbücher / Sachbilderbücher
Beschreibung
परिचय
समाज के प्रति बहुत ही संवेदनशील और समर्पित व्यक्तित्व रखने वाले डॉ. वेद प्रकाश दुबे की प्रारम्भिक शिक्षा दिल्ली में हुई। आपने डॉ. राम मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय, अयोध्या से पीएचडी की डिग्री हासिल की। सर्वप्रथम आपकी नियुक्ति केनरा बैंक में राजभाषा अधिकारी के पद पर वर्ष 1984 में हुई। 1995 में ‘संघ लोक सेवा आयोग’ द्वारा आपको सहायक निदेशक के पद हेतु चुना गया। देश के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों गृह मंत्रालय नार्थ ब्लाक, राज भाषा विभाग गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, वित्तीय सेवाएं विभाग वित्त मंत्रालय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, शहरी संपदा विकास एवं गरीबी उपशमन मंत्रालय, मुख्य श्रम आयुक्त कार्यालय श्रम मंत्रालय, विधि एवं न्याय मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में सहायक निदेशक, उप-निदेशक, संयुक्त निदेशक और निदेशक के रूप सेवाएं प्रदान की।
डॉ. वेद प्रकाश दुबे ने हिंदी एवं भारतीय भाषाओं और संस्कृति के लिए देश भर में सरकार की नीतियों के बारे में मार्गदर्शन दिया। तथा संसदीय राज भाषा समितियों के आदेशों एवं दिशा निर्देशों के सम्बन्ध में समुचित मार्ग दर्शन दिया। भारतीय भाषाओं व संस्कृति तथा उनके मूल्यों के लिए आप आज भी सक्रिय हैं। आपका मानना है कि भारत की भाषाओं और संस्कृति को हमें वैश्विक पटल पर आगे लाना है जिससे अंग्रेजी भाषी लोगों को भारतीय संस्कृति की महानता के बारे में पता चल सके।
पुस्तक के बारे में
पर्यावरण के बिना मनुष्य का जीवन अकल्पनीय है। यह संसार पंचतत्वों से मिलकर बना है: पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी तत्व, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे आदि मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। जंगलों के अभाव से संसार का अस्तित्व खतरे में आ सकता है। हमने अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु जंगलों को काटा, बेचा और धरती को बेरंग किया, परिंदों और जीव-जंतुओं को बेघर किया और जल और वायु को प्रदूषित किया। वायु प्रदूषण के चलते जीवन दायिनी ओज़ोन परत प्रभावित हुई। ओज़ोन में छेद होने से पूरी दुनिया में जलवायु का तापमान बढ़ा। सुनामी आई, समुद्र के किनारे बसे शहरों में भयंकर तूफ़ान आए तथा भूमि का कटाव हुआ। तब जाकर हमें पेड़-पौधों और जंगलों की याद आई। पूरी दुनिया में पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा। इस बात पर जोर दिया गया कि मनुष्य के अस्तित्व के लिए पृथ्वी पर 33% जंगल का होना अनिवार्य है लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ। आज कई जीव-जंतु विलुप्त होने के कगार पर हैं। हम ‘बया’ का घोंसला तोड़ कर अपना ड्राइंग रूम तो सजा लेते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि हमने किसी की दुनिया उजाड़ दी है। डॉ. वेद प्रकाश दुबे की यह पुस्तक पर्यावरण की इन्हीं चिंताओं की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है।