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Bundelkhand ka itihas

from 1531-1857 CE

Brijesh Kumar Srivastav

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ca. 3,99
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D.K. Printworld img Link Publisher

Geisteswissenschaften, Kunst, Musik / Geschichte

Beschreibung

About the Book
प्रस्तुत पुस्तक बुन्देलखण्ड का इतिहास में बुन्देलखण्ड के सीमांकन, नामकरण एवं बुन्देला साम्राज्यों की स्थापना को रोचक ढंग से समझाने का प्रयास किया गया है। 
अखिल भारतीय स्तर पर 1836 ई॰ में भारतीय स्वाधीनता का प्रथम प्रस्ताव चरखारी में पारित हुआ था। इसके बाद 1842 ई॰ के बुन्देला विद्रोह में जैतपुर नरेश पारीछत ने अपने सहयोगियों मधुकरशाह एवं हिरदेशाह के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के दाँत खट्टे कर दिए। इसी प्रकार 1857 ई॰ की क्रान्ति में बानपुर राजा मर्दन सिंह, शाहगढ़ राजा बखतवली एवं रानी लक्ष्मीबाई ने अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर अंग्रेज़ों को अत्यधिक परेशान किया। बुन्देलखण्ड के अंग्रेज़ों ने सागर आकर जान बचाई। सागर के किले में पूरे 370 अंग्रेज़ों ने शरण ली। इस किले को चारों ओर से क्रान्तिकारियों ने घेर लिया। बड़ी मुश्किल से ब्रिगेेडियर जनरल ह्यूरोज ने बुन्देलखण्ड मंे 1857 ई॰ की क्रान्ति का दमन किया।
उक्त समस्त घटनाक्रम को प्रथम बार इस पुस्तक में सहज सरल एवं सुबोध ढंग से पिरोया गया है तथा बुन्देलखण्ड के इतिहास को प्रथम बार रोचक शैली में धाराप्रवाह ढंग से प्रस्तुत करने का हरसम्भव प्रयास किया गया है।
आशा है यह पुस्तक छात्रों, शोधार्थियों सहित इतिहास में रुचि रखने वाले आम नागरिकों को भी रूचिकर लगेगी। 
About the Auhtor
बी॰के॰ श्रीवास्तव का जन्म 2 मई 1968 को हुआ था। उनकी इतिहास विषय पर पैंतीस से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। विभिन्न शोध पत्रिकाओं एवं सम्पादित पुस्तकों में उनके 85 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित हो चुके हैं तथा सौ से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों एवं सम्मेलनों में उन्होंने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए हैं। संस्कृतिपरक मूल्य संस्थापना शिविर के अलावा तीन राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। भारत की विभिन्न शोध पत्रिकाओं में वे सम्पादक, सह-सम्पादक, सदस्य सम्पादक मण्डल एवं सदस्य सलाहकार मण्डल के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। वे वर्तमान में मध्यप्रदेष इतिहास परिषद् के अध्यक्ष हैं, इसके अलावा भी राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न अकादमिक संस्थाओं में वे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष एवं आजीवन सदस्य के रूप में जुड़े हुए हैं। नौ शोध छात्र उनके मार्गदर्शन में पीएच॰डी॰ उपाधि प्राप्त कर चुके हैं एवं आठ शोधरत हैं। इतिहास को आम जनता तक पहुँचाने के प्रयासस्वरूप उनके सहयोग एवं मार्गदर्शन में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित दो लोकप्रिय नाटकों का मंचन हो चुका है। इसके लिए फिल्म अभिनेता श्री गोविन्द नामदेव द्वारा उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। अपनी विशिष्ट शोध दृष्टि के लिए भी उन्हें सम्मानित किया गया है। वर्तमान में वे डाॅ॰ हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में प्रोफेसर एवं डायरेक्टर, इंस्टीट्यूट आॅफ डिस्टेंस एजूकेषन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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Lokageet, Bundela, Angarej, Paltan, Rani, Chhatrasal, Kranti